इन्सान की खुशबू रहती है इन्सान बदलते रहते हैं,
दरबार लगा रहता है, दरबारी बदलते रहते हैं ।
प्रभु की असीम कृपा से श्रद्धालु भक्त व उनका स्नेह ही समाज को समर्पित होता है । संप्रभुता की संरक्षा में सर्वोपरि सामाजिक परिकल्पना में दिए जाने वाले सन्देश गुणात्मक हो - साथ ही दोष निवारण में सहायक हों, तभी सामाजिक उत्थान संभव है । वर्तमान युग के परिदृश्य में सामाजिक पराकाष्ठा कितनी स्थिर है, उस पर चिंतन करते रहना आवश्यक है । बाला जी दरबार में सभी श्रद्धालु भक्तों का चित्त मन हृदय की शिथिल कोशिकाऐं सामान्य होना स्वाभाविक है परन्तु चिंतन मनन की अभिव्यक्ति ईश्वर को किस रूप में समर्पित हैं उसका अनुभव सर्वोपरि है । परन्तु मन सदैव विचिलित रहता है स्थिरता कायम करने में सर्वोपरि तो सोच परिवर्तनीय है ।
निश्चित रूप से जब मनुष्य परिवर्तन की परिधि में प्रवेश करता है तो उसके
लिए सभी मार्ग ईश्वर स्वयं खोल देते हैं । इसिलिए रोम-रोम में बसने वाले
भगवान उनके मन की आस्था में बने स्नेह से समर्पित हो तो मनुष्य का जीवन
सकुशल होगा । दोषपूर्ण विचारों का त्याग व नष्ट होना तय हो जायेगा ।
जीवनपर्यन्त मनुष्य आनन्दित होगा और उसमें संतुष्टि का समावेश भी हो जायेगा
।
जगतगुरु जगदाचार्य साध्वी श्री राघवेन्द्री जी महाराज ईश्वर की असीम कृपा
के निकट हैं, उनका मानना है कि अन्त में अनंत तक ईश्वर का स्मरण ही मनुष्य
को भव सागर से पार लगाता है । संभवतः भक्ति से ही भगवान मिलते हैं, नहीं
मिलते वो ज्ञान से । सभी का जीवन सुख समृद्धि वाला बने ऐसा प्रयास सभी को
मिलकर करना चाहिए ।
सुखी रहें संसार सब, दुखिया रहे न कोई,
यह अभिलाषा भक्त की बाबा पूरी होय ।